✻ चौहान वंश
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चौहान वंश :-
✹ राजपूतों के राज्य में गहड़वालो' के पश्चात चौहान राज्य प्रमुख दूसरा राज्य था. इसकी प्रमुख शाखा शपादलक्ष के चौहान राज्य की स्थापना सातवीं शताब्दी में वासुदेव ने की थी इस राज्य की राजधानी अजमेर के पास शाकम्भरी (सांभर) थी |
✹ चौहान वंश के प्रारम्भिक राजा गुर्जर-प्रतिहारों के सामंत थे 10 वी शताब्दी के लगभग वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों ने मुक्त होकर स्वत्तन्त्र राज्य की स्थापना की थी |
✹ वाक्पतिराज के पुत्र सिद्धराज ने चौहान वंश की सत्ता उत्तराधिकारी के रूप में सँभाली थी सिद्धराज ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी |
✹ चौहान वंश के शासक अजयराज ने अजमेंर नगर को बसाया था इसी वंश के शासक अर्णोराज ने अजमेर पर आक्रमण करने वाले तुर्कियों को परास्त किया था |
✹ 1153-1164 ई. के मध्य विग्रहराज चतुर्थ 'बीसलदेव' ने चौहान वंश की सत्ता संभाली थी चौहानो की शक्ति का सर्वाधिक विस्तार इसी काल में हुआ था विग्रहराज चतुर्थ ने दिल्ली, झाँसी पर कब्जा किया तथा तुर्की आततायिर्यों को पराजित किया था. 'ललित विग्रहराज' नामक ग्रन्थ सोमेश्वर ने विग्रहराज के सम्मान में लिखा था. पंजाब, पश्चिमी-उत्तरप्रदेश तथा राजस्थान में उसका साम्राज्य फैला हुआ था. राजपूताना एवं मालवा के कई शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार की थी |
✹ चौहान वंश का अन्तिम महान शासक पृथ्वीराज तृतीय था. उसने चौलुवय, चंदेल राजाओं से युद्ध किया था इम शासक ने बून्देलखण्ड के चन्देल शासक परमार्दि देव को युद्ध में पराजित किया था | वीर योद्धा आल्हा- ऊदल इसी युद्ध में मारे गये थे, जिनके ऊपर "आल्हाखण्ड' लिखा गया था तराईन के प्रथम युद्ध 1191 ई. से मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज के हाथों परास्त होकर भाग गया था तराईन के द्वितीय युद्ध 1192 ई. में मुहम्मद गौरी ने उसी को बंदी बना कर मार दिया था | चन्दवरदाई द्वारा लिखित 'पृथ्वीराज रासो’ में उसके प्रताप का वर्णन किया गया है. तुर्कों ने अजमेर और दिल्ली पर आक्रमण कर चौहान वंश का अन्त कर दिया था । 1192 ई. में कुतुबधीन ऐवक ने चौहान वंश की सत्ता का अंत कर दिया था चौहान शासक गोविन्द, हरिराज पृथ्वीराज के पश्चात भी तुकों के अधीनस्थ शासक रहे |