अदिश राशि :-
वे राशि जिन्हें पूर्णत: व्यक्त करने के लिए केवल परिमाण की आवश्यकता होती है , अदिश राशि कहलाती है | अदिश राशि साधारण बीज गणितीय नियमों का पालन करती है |
उदाहरण - द्रव्यमान , घनत्व , आयतन , लंबाई , चाल , दूरी आदि |
सदिश राशि :-
वे राशियाँ जिन्हें व्यक्त करने के लिए परिमाण के साथ-साथ दिशा की भी आवश्यकता होती है सदिश राशि कहलाती है सदिश राशि साधारण बीजगणितीय नियमों का पालन नहीं करती है
जैसे : वेग , त्वरण ,बल आदि |
Note :- 1. यह आवश्यक नहीं है कि किसी राशि में परिमाण के साथ-साथ दिशा हो और वह सदिश राशि ही हो
जैसे विधुत धारा परिमाण के साथ-साथ दिशा भी होती है , परंतु वह फिर भी अदिश राशि है क्योंकि विद्युत धारा का साधारण बीजगणितीय नियमों की सहायता से जोड़ा या घटाया जा सकता है
2. कुछ राशियां ऐसी होती है जिनकी अपनी तो कोई दिशा नहीं होती है परंतु अलग-अलग दिशाओं में उनका परिमाण अलग-अलग होता है , ऐसी राशि प्रदिश राशि कहलाती है
जैसे : जडत्व आघूर्ण , चुम्बकशीलता , वैधुतशीलता आदि |
सदिश राशियों का निरूपण :-
सदिश राशियों को सरल रेखा के द्वारा निरूपित किया जाता है सदिश रेखा की लंबाई सदिश के परिमाण को व्यक्त करती है |
कोई सदिश जहां से प्रारंभ होता है उसे टेल(पूंछ) कहते हैं तथा जहां समाप्त होता है उसे हैड (सिर) कहते हैं |
उपरोक्त सदिश को PQ→ से व्यक्त करते हैं इसे कभी भी QP→ से व्यक्त नहीं करते हैं
सदिश राशियों को अंग्रेजी वर्णमाला अक्षर के ऊपर तीर का चिन्ह लगाकर प्रदर्शित करते हैं जैसे वेग सदिश को V→ से प्रदर्शित करते हैं
1. एक समान सदिश :-
ऐसे सदिश जिनके परिमाण तथा दिशा समान होते हैं एकसमान या समतुल्य सदिश कहलाते हैं
उदाहरण : A→ = B→
2. असमान सदिश :-
1. ऐसे सदिश जिनकी दिशा तो सामान व परिमाण अलग-अलग होते हैं , असमान सदिश कहलाते हैं |
उदाहरण : A→ ≠ B→
2. ऐसे सदिश जिनका परिमाण समान व दिशा अलग-अलग होती है असमान सदिश कहलाते हैं
उदाहरण : A→ = B→
3. ऐसे सदिश जिनका परिमाण व दिशा अलग-अलग होते हैं , असमान सदिश कहलाते हैं
उदाहरण : A→ ≠ B→
शून्य सदिश :-
ऐसे सदिश जिनका परिमाण शून्य होता है , शून्य सदिश कहलाते हैं ।
जैसे : विराम अवस्था में स्थित किसी वस्तु का शून्य सदिश होता है शून्य सदिश की कोई अपनी दिशा नहीं होती | इसे किसी भी दिशा में लिया जा सकता है अर्थात् इसकी दिशा स्वैच्छिक होती है |
शून्य सदिश के गुण :-
1. किसी सदिश में शून्य सदिश की गुणा करने पर शून्य सदिश ही प्राप्त होता है |
उदाहरण : A→ . 0→ = 0→
2. यदि किसी सदिश में शून्य सदिश जोड़ने पर सदिश राशि अपरिवर्तित रहती है |
उदाहरण : A→ + 0→ = A→
3. यदि दो विपरीत सदिशो को आपस में जोड़ा जाए , तो शून्य सदिश ही प्राप्त होता है |
उदाहरण : A→ = -B→
A→ + B→ = 0→
-B→ + B→ = 0→
4. यदि किसी शून्य सदिश में किसी संख्या की गुणा कर दे तो शून्य सदिश ही प्राप्त होता है
उदाहरण : n . 0→ = 0→ { जहाँ n = 1,2,3,4,5,6,7 ....}
विपरीत सदिश :-
ऐसे सदिश जिनके परिमाण तो समान व दिशा विपरीत होती है , विपरीत सदिश कहलाते हैं
उदाहरण : A→ = B→
सदिश राशियों में संख्या की गुणा :-
यदि किसी सदिश राशि में किसी संख्या की गुणा कर दे तो सदिश राशि ही प्राप्त होती है यदि संख्या धनात्मक है तो अंतिम परिमाण की दिशा सदिश राशि की दिशा में होगी यदि संख्या ऋण आत्मक है तो अंतिम परिमाण की दिशा सदिश राशि की दिशा के विपरीत होगी
उदाहरण : 1. A→ = 10 मीटर उत्तर दिशा ; तब 5A→ = 50 मीटर उत्तर दिशा
2. यदि A→ = 20 मीटर उत्तर दिशा ; तब -2A→ = 40 मीटर दक्षिण दिशा
एकांक सदिश :-
ऐसा सदिश जिनका परिमाण एक या एकांक हो , एकांक सदिश कहलाता हैं
एकांक सदिश को अंग्रेजी वर्णमाला के छोटे अक्षर के ऊपर केप लगाकर व्यक्त करते हैं |
किसी सदस्य को उसके परिमाण से भाग देने पर एकांक सदिश प्राप्त होता है |
माना किसी सदिश r→ का परिमाण = | r→|
एकांक सदिश की दिशा सदिश राशि के समानांतर होती है
स्थिति सदिश :-
मूल बिंदु से किसी कण की स्थिति को स्थिति सदिश की सहायता से व्यक्त करते हैं जैसे चित्र के मूल बिंदु 0 से किसी कण P की स्थिति को स्थिति सदिश OP→ = r→ से निरूपित किया गया है
विस्थापन सदिश :-
यदि किसी क्षण t पर कण P की मूल बिंदु 0 से स्थिति r1→ है
तथा क्षण t' पर कण की स्थिति r2→ हो जाती है
कणों की स्थिति का अंतर विस्थापन सदिश कहलाता है इससे △r→ से व्यक्त करते हैं
△r→ = r2→ - r1→
Note : 1. विस्थापन सदिश को एक सरल रेखा से व्यक्त करते हैं जो वस्तु की अंतिम स्थिति को उसकी प्रारंभिक स्थिति से जोड़ती है |
विस्थापन सदिश का मान पथ की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है |
2. समान मात्रक वाली राशियों को ही जोड़ा या घटाया जा सकता है जबकि अलग-अलग मात्रकों वाली अदिश राशियों को गुणा व भाग कर सकते हैं |
3. मुक्त आकाश में किसी भी सदिश को उसकी समांतर विस्थापित करते हैं
तो सदिश राशि अपरिवर्तित रहती है ऐसे सदिशो को मुक्त सदिश कहते हैं कुछ भौतिक उपयोगों में सदिश की स्थिति या उसकी क्रिया रेखा अति महत्वपूर्ण होती है
ऐसे सदिश को स्थानगत सदिश कहते हैं |
4. सदिश समीकरण अक्षों के चुनाव पर निर्भर नहीं करती है |
सदिश राशियों का संकलन (जोड़ना) : गणितीय विधि :-
माना दो सदिश A→ व B→ को सीधे क्रम में जोड़ा गया है
त्रिभुज के नियमानुसार इन सदिशो को विपरीत क्रम में जोड़ने वाली भुजा सदिशो के परिमाण को व्यक्त करती है सदिशो का परिणामी भी सदिश होता है | रेखा PQ को आगे बढ़ाते हैं तथा
बिंदु M से उसके ऊपर एक लम्ब डालते हैं
समकोण △PMS में
पाइथागोरस प्रमेय से
समीकरण 2 में PQ , QS तथा MS के मान रखने पर
विशेष स्थितियाँ :-
1. यदि θ = 0०
यदि दोनों सदिश समान दिशा में होंगे तो उनका परिणामी अधिकतम होगा
2. यदि θ = 90०
3. यदि θ = 180०
प्रक्षेप्य गति :-
यदि किसी वस्तु को आकाश में निश्चित वेग से फेंका जाए तथा वस्तु पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र के भीतर गति करे तो फेंकी गई वस्तु प्रक्षेप्य तथा वस्तु की गति प्रक्षेप्य गति कहलाती है
उदाहरण : 1. हवा में फेंकी गई गेंद की गति
2. फुटबॉल की गति आदि
वस्तु की प्रक्षेप्य गति का सर्वप्रथम उल्लेख वैज्ञानिक गैलीलियो ने किया था | इन्होने अपने लेख में प्रक्षेप्य गति के क्षेतिज एवं उर्ध्वाधर घटकों की स्वतंत्र प्राकृति का उल्लेख किया था |
प्रक्षेप्य गति का अध्धयन सरलतापूर्वक करने के लिए निम्न दो अभिधारणाएं दी गई
1. गुरुत्वीय त्वरण का मान नियत व दिशा उर्ध्वाधर नीचे की ओर होनी चाहिए
2. वायु के प्रतिरोध को नगण्य मानना चाहिए
प्रक्षेप्य पथ :-
माना कोई प्रक्षेप्य θ कोण पर u वेग से उर्ध्वाधर दिशा में फेंका गया है | फेंकी गई वस्तु में गुरुत्व के कारण लगने वाले त्वरण की दिशा सदैव नीचे की ओर होती है |
वस्तु के प्रारम्भिक वेग के निम्न घटक होंगे -
1. क्षेतिज घटक ux = uCosθ ....... (1)
2. उर्ध्वाधर घटक uy = uSinθ ....... (2)
वस्तु में उत्पन्न त्वरण के घटक निम्न प्रकार होंगे -
1. क्षेतिज घटक ax = 0
2. उर्ध्वाधर घटक ay = g
गति के प्रथम समीकरण से
क्षेतिज तल में गति के लिए -
उर्ध्वाधर गति के लिए -
गति के प्रथम समीकरण से
vy = uy - gt
vy = uSinθ - gt
प्रक्षेप्य द्वारा प्राप्त अधिकतम ऊँचाई :-
माना प्रक्षेप्य को अधिकतम ऊँचाई प्राप्त करने में t1 समय लगता है
ay = -g
t = t1
gt1 = USinθ
t1 =
समीकरण 2 में समीकरण 1 से t का मान रखने पर
स्थिति - 1 :- यदि θ = 90० हो तो
प्रक्षेप्य काल या उड्डीयन काल :-
चूँकि वस्तु गुरुत्व के आधीन गति कर रही है अत: वस्तु को जितना समय ऊपर जाने में लगता है , ठीक उतना ही समय नीचे आने में लगेगा |
तब उड्डीयन काल :-
T = 2t1 { चूँकि t1 =
T =
प्रक्षेप्य की परास :-
किसी प्रक्षेप्य को जिस समतल से फेंका जाता है वापस उसी समतल में आने में प्रक्षेप्य द्वारा क्षेतिज तल में तय की गई दूरी परास कहलाती है
R = ux x T .... (1)
{ चूँकि T =
{चूँकि ux = uCosθ}
स्थिति - 1 :- यदि θ = 45०
अर्थात् किसी प्रक्षेप्य को अधिकतम दूरी तक प्रेक्षित करने के लिए उसे 45० के कोण पर प्रेक्षित करना चाहिए
अधिकतम ऊँचाई एवं अधिकतम परास में सम्बन्ध :-
हम जानते है
किसी समतल में गति :-
इस भाग में हम सदिशो की सहायता से दो या तीन विमा में होने वाली गति का अध्धयन करेंगे
1. स्थिति सदिश :-
किसी समतल में स्थिति कण-P का स्थिति सदिश r→ है स्थिति सदिश को निम्न समीकरण की सहायता से व्यक्त कर सकते है
यहाँ x तथा y अक्षो के अनुदिश स्थिति सदिश r→ के घटक है | इन्हें हम कण के निर्देशांक भी कह सकते है
2. विस्थापन सदिश :-
किसी वस्तु की अंतिम स्थिति तथा प्रारंभिक स्थिति के अंतर को विस्थापन कहते है
माना कोई कण किसी क्षण t1 पर बिंदु P पर स्थित है तथा क्षण t2 पर वह बिंदु Q पर पहुँच जाता है
सदिश योग की त्रिभुज विधि से
△OQP में
{ चूँकि r = x.î + y.ĵ }
समीकरण 1 में r1→ व r2→ के मान रखने पर
चूँकि x2 - x1 = △x
चूँकि y2 - y1 = △y
वेग :-
वस्तु के विस्थापन और उसके संगत समयांतराल के अनुपात को वेग कहते है
त्रिभुज OQP में :-
पाइथागोरस प्रमेय से
4. त्वरण
किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते है समतल तल में गतिमान किसी वस्तु का औसत त्वरण वेग में परिवर्तन की दर के बराबर होता है
5. तात्क्षणिक वेग :-
किसी क्षण विशेष पर वस्तु का वेग तात्क्षणिक वेग कहलाता है
तात्क्षणिक त्वरण :-
किसी क्षण विशेष पर वस्तु में उत्पन्न त्वरण तात्क्षणिक त्वरण कहलाता है
किसी समतल में आपेक्षिक वेग :-
सरल रेखा के अनुदिश आपेक्षिक वेग की अभिधारणा से हम भली-भांति परिचित है इस आपेक्षिक वेग को किसी समतल (द्वि विमीय) या त्रिविमीय गति के लिए सरलता से विस्तृत कर सकते है | माना दो वस्तुएं A तथा B जिनके वेग क्रमश: vA
तथा vB है
तब वस्तु A के सापेक्ष B का वेग :-
वस्तु B के सापेक्ष A का वेग :-
एक समान वृतीय गति :-
यदि कोई वस्तु एकसमान चाल से वृताकार पथ पर गति करे तो वस्तु की गति एकसमान वृतीय गति कहलाती है
जब कोई वस्तु वृताकार पथ पर गति करती है तो वस्तु के वेग की दिशा लगातार परिवर्तित होती रहती है जिस कारण वस्तु का वेग परिवर्तित होता है | जिससे वस्तु की गति में त्वरण
उत्पन्न हो जाता है | यदि वस्तु की गति में परिवर्तित दिशा बदलने के कारण उत्पन्न होता है तो वस्तु की गति में उत्पन्न त्वरण को अभिकेन्द्रीय त्वरण कहते है
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