✹ प्रमुख लोकोक्तियाँ ( कहावतें ) एवं उनके अर्थ का अध्धयन ( pramukh lokokatiyan kahavte evm unke arth ka adhdhyan ) :-
"लोकोक्ति" शब्द लोक + उक्ति से मिलकर बना हैं । लोक - समाज में प्रचलित एवं लोक द्वारा स्वीकृति की गई "उक्ति" ही कालांतर में बोल - चाल मैं प्रचलित हो जाती है तथा लोकोक्ति का रूप ग्रहण कर लेती है । लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना अवश्य होती है । लोकोक्ति स्वतंत्र वाक्य होती है । इनका प्रयोग करने के लिए वाक्य के अंतर्गत इन्हें ज्यों का त्यों रखा जाता है ।
प्रमुख लोकोक्तियाँ ( कहावतें ) एवं उनके अर्थ :-
अंत भले का भला | अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा ही होता है। |
अंधों में काना राजा | गुणहीन लोगों में थोड़े गुणों वाला व्यक्ति बहुत गुणवान मन जाता है। |
अपना हाथ जगन्नाथ | खुद से किया गया कार्य सबसे अच्छा। |
अंधा क्या चाहे दो आँखे | बिना प्रयास चाही गई वास्तु मिल जाना। |
ऊँची दूकान फीके पकवान | नाम के अनुरुप कार्य न करना। |
एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी | दोषी होकर भी दूसरों पर रौब दिखाना। |
एक पंथ दो काज | एक काम से दोहरा लाभ। |
एक अनार सौ बीमार | कम वस्तु और चाहने वाले अनेक। |
एक तो गिलोय फिर नीमचढ़ी | बुरा व्यक्ति कुसंगति में और बुराबन जाता है। |
एक और एक ग्यारह होना | एकता में बड़ी शक्ति होना। |
एक तो करेला फिर नीम चढ़ा | बुरा व्यक्ति कुसंगति में और बुरा बन जाता है। |
अपनी करनी पार उतरनी | मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है। |
अक्ल बड़ी या भैंस | शारीरिक बल से बुद्धि अच्छी होती है। |
अंधेर नगरी चौपट राजा | हर तरफ अव्यवस्था। |
अंधी पीसे कुत्ता खाय | कार्य कोई करे फल किसी और को मिले। |
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना | कार्य आरम्भ करने के बाद आने वाली मुसीबत से न घबराना। |
ओछे की प्रीत बालू की भीति | दुष्टव्यक्ति का प्रेम अस्थिर होता है। |
कंगाली में आता गीला होना | मुसीबत में और मुसीबत आना। |
कहे खेत खलियान की | कुछ का कुछ सुनना। |
अधजल गगरी छलकत जाय | ओछे व्यक्ति दिखावा बहुत करते है। |
अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग | सबके विचार, सोच और कार्यशैली अलग-अलग होते है। |
अँधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनों को ही देत | हर बार अपनों को ही लाभ पहुँचाना। |
अंधे के हाथ बटेर लगना | अयोग्य व्यक्ति को बिना प्रयास के कोई विशेष वास्तु मिल जाना। |
कूद-कूद मछली बगुले को खाय | विपरीत कार्य करना। |
खग ही जाने खग | जो जिसकी संगती में रहता है उसी की बात समझता है। |
खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे | शर्मिंदा होकर दूसरों पर क्रोध निकलना। |
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल | अयोग्य व्यक्ति कोअच्छी वस्तु मिल जाना। |
छोटा मुँह और बड़ी बात | अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना। |
जंगल में मोर नचा किसने देखा | ऐसे स्थान पर कार्य करना जिसका लाभ किसी को न हो। |
जिस थाली में खाये उसी में छेद करे | कृतघ्न व्यक्ति। |
जिसकी लाठी उसकी भैंस | बलवान की ही जीत होती है। |
जिन खोजातिन पाइया गहरे पानी पैठि | परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है, बिना परिश्रम के नहीं। |
जो गरजते है वो बरसते नहीं | जो बड़ी-बड़ी बातें बोलते है, वे काम नहीं कर सकते। |
ढाक के तीन पात | सदैव एक सी स्थिति |
डूबते को तिनके का सहारा | मुसीबत आने पर थोड़ी बहुत सहायता भी बहुत है। |
तबेले की बला बन्दर के सर | दोष कोई करे सज़ा कोई और पाये। |
तीन लोक से मथुरा न्यारी | सबसे अलग और अनोखा। |
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज | ढोंग करना। |
घर की मुर्गी दाल बराबर | घर की चीज का आदर नहीं होता। |
अरहर की टट्टी गुजरती ताला | बेमेल वस्तुओं का साथ। |
आप भला तो जग भला | अच्छे के साथ सब अच्छा ही व्यवहार। |
आ बैल मुझे मार | जान-बूझकर मुसीबत मोल लेना। |
आँख का अंधा नाम नयनसुख | गुण के विपरीत नाम होना। |
आम के आम गुठलियों के दाम | दोहरा लाभ होना। |
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास | अपने लक्ष्य से भटक जाना। |
इधर कुँआ उधर खाई | दोनों तरफ संकट। |
ईश्वर की माया कही धूप कही छाया | भाग्य की विचित्रता। |
ऊँट के मुँह में जीरा | आवश्यकता से बहुत कम पूर्ति। |
ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी | सभी अवगुणों से युक्त। |
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा | अनावश्यक वस्तुओं से कोई वास्तु बनाना। |
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं बैठता | ज़िद्दी व्यक्ति किसी का कहना नहीं मनता। |
कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली | अत्यधिक बलवान व्यक्ति से भीड़ जाना। |
तेल देखो तेल की धार देखो | धैर्य के साथ सोच समझकर कार्य करना चाहिए। |
तेते पाँव पसारिये जैती लंबी सौर | जितनी आमदनी हो उसी हिसाब से खर्च करना चाहिए। |
थोथा चना बाजे घना | छोटा आदमी बहुत इतराताहै। या सार कम आडम्बर अधिक। |
दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते | मुफ्त में मिली वस्तु में गुण-दोष नहीं देखे जाते है। |
दीवारों के भी कान होते है | गुप्त बात करते समय अत्यधिक सावधानी रखनी चाहिए। |
दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पिता है | एक बार चोखा खाने के बाद व्यक्ति और सतर्क हो जाता है। |
देखें ऊँट किस ओर करवट बैठता है | देखें क्या फैसला आता है। |
दे पानी में आग दमालो दूर खड़ी | क्लेश का बीज बोकर तमाशा देखना। |
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का | अस्थिरता के कारण कही का न रहना। |
नई घोषन कंडो का तकिया | अनुभवहीन व्यक्ति द्वारा अजीब हरकत करना। |
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी | किसी झगड़े के कारण को नष्ट कर देना। |
अंधे को न्यौते न दो जाने आते | न ऐसा कार्य करते न मुसीबत आती। |
नाच न जाने आँगन टेढ़ा | अपनी कुशलता को छिपाने के लिए बहाने करना। |
ना ऊधो का लेना ना माधो को देना | किसी झंझट में नहीं पड़ना। |
ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी | किसी कार्य को करने के बदले असंभव शर्त रख देना। |
रोटी के बदले रोटी, का छोटी का मोती | सभी लगभग एक समान होना। |
सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली | ज़िंदगी भर पाप करने के बाद अंत में संत बनना। |
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद | मुर्ख व्यक्ति विद्वान व्यक्तियों की बातों को नहीं समझते। |
बिन माँगे मोती मिले माँगे मिले ना धूरि | माँगने से कुछ नहीं मिलता। |
बिल्ली के भागों छींका टूटना | अस्कमात कार्य होना। |
पत्थर को जोंक नहीं लगती | हठी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। |
मरे बिना स्वर्ग नहीं | स्वयं प्रयत्न करने पर ही कार्य बनता है। |
मान न मान मैं तेरा मेहमान | जबरदस्ती गले पड़ना। |
मुर्गा बाग नहीं देगा तो क्या सुबह नहीं होगी | किसी एक व्यक्ति के ना होने से कार्य नहीं रुकता। |
लकड़ी के बल बंदर नाचे | भय से सभी कांपते है। |
सावन हरे ना भादो सूखे | सदा एक समान। |
काला अक्षर भैस बराबर | बिलकुल अनपढ़। |
काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती है | व्यक्ति को एक बार ही मुर्ख बनाया जा सकता है। |
घर का भेदी लंका ढाये | आपसी फूट सेसर्वनाश हो जाता है। |
चाँदी देखे चाँदना, सुख देखे व्यवहार | सम्पत्ति के सभी सगेहोते है। |
चोर की दाढ़ी में तिनका | दोषी व्यक्ति को हमेशा डर रहता है। |
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