Visarg Sandhi ki paribhasha,niyam,sutra,parkar,350+ Examples
विसर्ग संधि की परिभाषा :-
विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार उत्पन्न होता है , उसे विसर्ग संधि कहते है |
उदाहरण - रज : + गुण = रजोगुण
दु : + ग = दुर्ग
स्व : + ग = स्वर्ग
विसर्ग (:) संधि के नियम या विसर्ग संधि के सूत्र तथा विसर्ग संधि के 350+ उदाहरण :-
(1) विसर्ग संधि का नियम - (1) विसर्ग का 'ओ' में बदलना :-
यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो एवं बाद में 'अ' या किसी वर्ग का तीसरा , चौथा या पांचवा वर्ण या " य , र , ल , व , ह " में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का 'ओ' हो जाता है |
(a) अ: + अ = ओ
(b) अ: + किसी वर्ग का तीसरा , चौथा या पांचवा वर्ण या " य , र , ल , व , ह " = अ: के स्थान पर 'ओ'
उदाहरण - यश: + गान = यशोगान
पर: + अक्षि = परोक्ष
मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
मन: + अनुभूति = मनोनुभूति
पय: + निधि = पयोनिधि
यश: + अभिलाषा = यशोभिलाषा
मन: + बल = मनोबल
मन: + रंजन = मनोरंजन
तप: + बल = तपोबल
तप: + भूमि = तपोभूमि
मन: + अभिराम = मनोभिराम
मन: + व्यथा = मनोव्यथा
मन: + नीत = मनोनीत
पर: + अक्षि = परोक्ष
तम: + गुण = तमोगुण
पुर: + गामी = पुरोगामी
रज: + गुण = रजोगुण
मन: + विकार = मनोविकार
मन: + हर = मनोहर
वय: + वृद्ध =वयोवृद्ध
सर: + ज = सरोज
मन: + नयन = मनोनयन
पय: + द = पयोद
प्रथम: + अध्याय = प्रथमोध्याय
तप: + धन = तपोधन
उर: + ज = उरोज
शिर: + भाग = शिरोभाग
अध: + गामी = अधोगामी
अध: + भूमि = अधोभूमि
अध: + लिखित = अधोलिखित
अध: + हस्ताक्षरकर्ता = अधोहस्ताक्षरकर्ता
अध: + गमन = अधोगमन
तप: + धन = तपोधन
अध: + भाग = अधोभाग
तिर: + धान = तिरोधान
तिर: + भूत = तिरोभूत
तेज: + मय = तेजोमय
पय: + धर = पयोधर
पुर: + धा = पुरोधा
मन: + रम = मनोरम
मन: + वृत्ति = मनोवृत्ति
मन: + हारी = मनोहारी
मन: + योग = मनोयोग
मन: + वेग = मनोवेग
मन: + विचार = मनोविचार
मन: + ग्राह्य = मनोग्राह्य
मन: + निग्रह = मनोनिग्रह
मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
मन: + वांछा = मनोवांछा
यश: + वर्मन = यशोवर्मन
यश: + भाग = यशोभाग
यश: + वर्मा = यशोवर्मा
यश: + गान = यशोगान
यश: + वर्धन = यशोवर्धन
रज: + दर्शन = रजोदर्शन
वक्ष: + ज = वक्षोज
शिर: + रेखा = शिरोरेखा
शिर: + भाग = शिरोभाग
सर्वत: + मुखी = सर्वतोमुखी
सर: + वर = सरोवर
अध: + गति = अधोगति
पुर: + हित = पुरोहित
यश: + दा = यशोदा
यश: + गान = यशोगान
मन: + ज = मनोज
मन: + विज्ञान = मनोविज्ञान
मन: + दशा = मनोदशा
अन्य: + अन्य = अन्योन्य
अंतत: + गत्वा = अंततोगत्वा
अध: + भाग = अधोभाग
अध: + मुखी = अधोमुखी
अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र
तप: + वन = तपोवन
तिर: + हित = तिरोहित
तप: + मय = तपोमय
तेज: + राशि = तेजोराशि
तिर: + भाव = तिरोभाव
तिर: + हित = तिरोहित
तेज: + पुंज = तेजोपुंज
पय: + धि = पयोधि
पय: + ज = पयोज
मन: + रथ = मनोरथ
मन: + मंथन = मनोमंथन
मन: + मालिन्य = मनोमालिन्य
मन: + भव = मनोभव
मन: + भाव = मनोभाव
मन: + मय = मनोमय
मन: + भावना = मनोभावना
मन: + रोग = मनोरोग
मन: + विनोद = मनोविनोद
यश: + गुण = यशोगुण
यश: + मती = यशोमती
यश: + गाथा = यशोगाथा
यश: + धरा = यशोधरा
यश: + भूमि = यशोभूमि
रज: + मय = रजोमय
शिर: + रुह = शिरोरुह
शिर: + भूषण = शिरोभूषण
शिर: + मणि = शिरोमणि
सर: + कार = सरोकार
सर: + रुह = सरोरुह
(2) विसर्ग संधि का नियम -2 विसर्ग का 'र्' में बदलना : -
विसर्ग(:) के पहले 'अ/आ' के अलावा कोई अन्य स्वर हो तथा विसर्ग (:) के बाद किसी वर्ग का तीसरा , चौथा या पांचवा वर्ण ( ग, घ, ङ, ज , झ, ञ, ड , ढ, ण, द, ध, न, ब,भ, म ) या " य , र , ल , व , ह " में से कोई हो या अन्य कोई स्वर हो तो संधि होने पर विसर्ग के स्थान पर 'र्' हो जाता है |
अ या आ से भिन्न स्वर (:) + कोई स्वर / किसी वर्ग का तीसरा , चौथा या पांचवा वर्ण / य , र ,'र्' , ल , व , ह = (:) के स्थान पर 'र्'
उदाहरण - दु: + दशा = दुर्दशा
आशी: + वाद = आशीर्वाद
नि: + मल = निर्मल
दु: + गुण = दुर्गुण
आयु: + वेद = आयुर्वेद
बहि: + अंग = बहिरंग
दु: + उपयोग = दुरुपयोग
नि: + बल = निर्बल
बहि: + मुख = बहिर्मुख
दु: + ग = दुर्ग
प्रादु: + भाव = प्रादुर्भाव
नि: + आशा = निराशा
नि: + अर्थक = निरर्थक
आयु: + विज्ञान = आयुर्विज्ञान
चतु: + दिशा = चतुर्दिश ( आ का लोप )
ज्योति: + मय = ज्योतिर्मय
दु: + लभ = दुर्लभ
दु: + जय = दुर्जय
दु: + आत्मा = दुरात्मा
दु: + गा = दुर्गा
दु: + बोध = दुर्बोध
दु: + बुद्धि = दुर्बुद्धि
दु: + व्यवस्था = दुर्व्यवस्था
दु: + अभिसंधि = दुरभिसंधि
दु: + भाग्य = दुर्भाग्य
दु: + गंध = दुर्गन्ध
धनु: + धारी = धनुर्धारी
नि: + यात = निर्यात
दु: + आशा = दुराशा
नि: + उत्साह = निरुत्साह
आवि: + भाव = आविर्भाव
आशी: + वचन = आशीर्वचन
नि: + आहार = निराहार
नि: + आधार = निराधार
नि: + भय = निर्भय
नि: + आमिष = निरामिष
नि: + विघ्न = निर्विघ्न
धनु: + धर = धनुर्धर
आवि: + भूत = आविर्भूत
चतु: + दिक = चतुर्दिक
चतु: + भुज = चतुर्भुज
ज्योति: + विद = ज्योतिर्विद
दु: + आचार = दुराचार
दु: + व्यसन = दुर्व्यसन
दु: + व्यवहार = दुर्व्यवहार
दु: + गम = दुर्गम
दु: + दिन = दुर्दिन
दु: + य: + धन = दुर्योधन
दु: + अवस्था = दुरवस्था
दु: + भावना = दुर्भावना
दु: + गति = दुर्गति
धनु: + वेद = धनुर्वेद
धनु: + विघा = धनुर्विघा
नि: + ईह = निरीह
नि: + लेप = निर्लेप
नि: + बाध = निर्बाध
नि: + जन = निर्जन
नि: + वचन = निर्वचन
नि: + गमन = निर्गमन
नि: + लिप्त = निर्लिप्त
नि: + उद्देश्य = निरुद्देश्य
नि: + अक्षर = निरक्षर
नि: + उपम = निरुपम
नि: + गुण = निर्गुण
नि: + ईक्षण = निरीक्षण
प्रादु: + भाव = प्रादुर्भाव
बहि: + आक्रमण = बहिराक्रमण
बहि: + गमन = बहिर्गमन
बहि: + द्वार = बहिर्द्वार
नि: + आदर = निरादर
नि: + जल = निर्जल
नि: + दय = निर्दय
नि: + भर = निर्भर
नि: + विवाद = निर्विवाद
नि: + विकार = निर्विकार
नि: + उक्त = निरुक्त
नि: + धन = निर्धन
नि: + दोष = निर्दोष
नि: + अपराध = निरपराध
नि: + आकार = निराकार
नि: + अपेक्ष = निरपेक्ष
नि: + अभिमान = निरभिमान
नि: + झर = निर्झर
नि: + लज्ज = निर्लज्ज
नि: + उपाय = निरुपाय
नि: + मम = निर्मम
प्रादु: + भूत = प्रादुर्भूत
बहि: + आगमन = बहिरागमन
बहि: + मण्डल = बहिर्मण्डल
बहि: +द्वंद्व = बहिर्द्वंद्व
बहि: + आगत = बहिरागत
दु: + आचार = दुराचार
दु: + जन = दुर्जन
दु: + बल = दुर्बल
नि: + वाह = निर्वाह
दु: + वह = दुर्वह
(3) विसर्ग संधि का नियम - 3 विसर्ग का 'श् ' में बदलना : -
यदि विसर्ग के बाद च / छ या श हो तो विसर्ग का 'श्' हो जाता है |
विसर्ग (:) + च / छ / श = (:) के स्थान पर 'श्'
उदाहरण - नि: + चय = निश्चय
नि: + चिन्त = निश्चिन्त
दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
हरि: + चन्द्र = हरिश्चंद्र
पुर: + चरण = पुरश्चरण
तप: + चर्या = तपश्चर्या
क: + चित् = कश्चित्
दु: + शील = दुश्शील
मन: + चिंतन = मनश्चिंतन
अंत: + चेतना = अंतश्चेतना / अंत: चेतना
ज्योति: + चक्र = ज्योतिश्चक्र
बहि: + चक्र = बहिश्चक्र
प्राय: + चित = प्रायश्चित
नि: + चल = निश्चल
नि: + छल = निश्छल
दु: + शासन = दुश्शासन
दु: + चक्र = दुश्चक्र
पुन: + चर्या = पुनश्चर्या
यश: + शरीर = यशश्शरीर
आ: + चर्य = आश्चर्य
मन: + चेतना = मनश्चेतना
मन: + चिकित्सा = मनश्चिकित्सा
मन: + चिकित्सक = मनश्चिकित्सक
हरि: + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
नि: + चेष्ट = निष्चेष्ट
(4) विसर्ग संधि का नियम - 4 विसर्ग का 'स्' में बदलना :-
यदि विसर्ग (:) के बाद 'त' या 'थ' , या 'क्' आये तो विसर्ग का 'स्' हो जाता है |
विसर्ग (:) + त् / थ् / क = विसर्ग (:) के स्थान पर स्
उदाहरण - दु: + तर = दुस्तर
मन: + ताप = मनस्ताप
नि: + तेज = निस्तेज
नम: + ते = नमस्ते
अंत: + थल = अंतस्थल
बहि: + थल = बहिस्थल
वि: + तीर्ण = विस्तीर्ण
वि: + तृत = विस्तृत
नि: + तार = निस्तार
अंत: + ताप = अंतस्ताप
दु: + तीर्ण = दुस्तीर्ण
वि: + थापित =विस्थापित
वि: + तार = विस्तार
अन्त: + तल = अंतस्तल
(5)विसर्ग संधि का नियम-5 विसर्ग का 'स्' में बदलना :-
यदि विसर्ग (:) के पहले 'अ / आ' हो तथा विसर्ग के बाद " क / ख / प " या " फ" हो तो संधि होने पर विसर्ग का 'स्' बन जाता है |
अ: / आ: + क / ख / प / फ = स्क / स्ख / स्प / स्फ
उदाहरण - घृणा: + पद = घृणास्पद
पर: + पर = परस्पर
मन: + क = मनस्क
नम: + कार = नमस्कार
पुर: + कार = पुरस्कार
तिर: + कार = तिरस्कार
बृह: + पति = बृहस्पति
वन: + पति = वनस्पति
श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
पुर: + कृत = पुरस्कृत
भा: + कर = भास्कर
भा: + पति = भास्पति
वाच: + पति = वाचस्पति
यश: + कर = यशस्कर
(6)विसर्ग संधि का नियम - 6 विसर्ग का 'ष्' में बदलना :-
यदि विसर्ग (:) के पहले 'इ' या 'उ' हो तथा विसर्ग के बाद 'क' , 'ख' , 'ट' , 'ठ' , 'प' या 'फ' या 'ष्' वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर 'ष्' हो जाता है |
इ: / उ: + क, ख, ट, ठ, प, फ = (:) के स्थान पर 'ष्'
उदाहरण - नि: + क्रम = निष्क्रम
पु: + कर = पुष्कर
दु: + प्रकृति = दुष्प्रकृति
दु: + कर्म = दुष्कर्म
नि: + क्रिय = निष्क्रिय
दु: + काल = दुष्काल
बहि: + कृत = बहिष्कृत
चतु: + पद = चतुष्पद
दु: + परिणाम = दुष्परिणाम
स्थिर : + ठक्कुर = स्थिरष्ठक्कुर
नि: + पाप = निष्पाप
दु: + कर = दुष्कर
दु: + ट = दुष्ट
नि: + प्रयोजन = निष्प्रयोजन
चतु: + पाद = चतुष्पाद
दु: + प्रचार = दुष्प्रचार
चतु: + काष्ठ = चतुष्काष्ठ
धनु: + पाणि = धनुष्पाणि
दु: + पूर्य = दुष्पूर्य
नि: + ट = निष्ट
नि: + करुण = निष्करुण
नि: + कर्मण = निष्कर्मण
चतु: + षष्टि = चतुष्षष्टि
बहि: + क्रमण = बहिष्क्रमण
नि: + कंटक = निष्कंटक
नि: + कपट = निष्कपट
नि: + कलंक = निष्कलंक
नि: + कर्ष = निष्कर्ष
आवि: + कार = आविष्कार
चतु: + टीका = चतुष्टीका
नि: + काम = निष्काम
धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
नि: + फल = निष्फल
नि: + ठुर = निष्ठुर
चतु: + कोण = चतुष्कोण
नि: + पादन = निष्पादन
नि: + प्राण = निष्प्राण
दु: + प्रहार = दुष्प्रहार
चतु: + पथ = चतुष्पथ
ज्योति: + पति = ज्योतिष्पति
ज्योति: + फलक = ज्योतिष्फलक
ज्योति: + कण = ज्योतिष्कण
धनु: + खंड = धनुष्खंड
नि: + पक्ष = निष्पक्ष
नि: + क्रमण = निष्क्रमण
नि: + पंक = निष्पंक
बहि: + कार = बहिष्कार
(7) विसर्ग संधि का नियम - 7 विसर्ग (:) का अपरिवर्तित रहना :-
यदि विसर्ग (:) से पहले 'अ' हो तथा विसर्ग (:) के बाद 'क' या 'प' हो तो विसर्ग (:) यथावत बना रहता है , उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता है |
अ (:) + क / प = विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं
उदाहरण - अन्त: + करण = अन्त: करण
रज: + कण = रज: कण
अध: + पतन = अध: पतन
वय: + क्रम = वय: क्रम
मन: + कामना = मन: कामना
पय: + पान = पय: पान
प्रात: + काल = प्रात: काल
अंत: + पुर = अंत: पुर
तप: + पूत = तप: + पूत
मन: + कल्पित = मन: + कल्पित
(8)विसर्ग संधि का नियम -8 विसर्ग (:) यथावत रहेगा या (:) का श् / स् होगा :-
यदि विसर्ग (:) के बाद श , ष, स में से कोई वर्ण हो तो या तो विसर्ग यथावत रहता है या विसर्ग के स्थान पर उसके बाद वाला वर्ण ( श् / ष् / स् ) बन जाता है |
विसर्ग (:) + श / स् = विसर्ग (:) यथावत रहेगा या (:) का श् / स् होगा
उदाहरण - नि: + संतान = नि: संतान / निस्संतान
नि: + सन्देह = नि: सन्देह / निस्सन्देह
नि: + शंक = नि: शंक / निश्शंक
हरि: + शेते = हरि: शेते / हरिश्शेते
प्रात: + स्मरण = प्रात: स्मरण / प्रातस्स्मरण
पुर: + सर = पुर: सर / पुरस्सर
दु: + साहस = दु: साहस / दुस्साहस
दु: + स्वप्न = दु: स्वप्न / दुस्स्वप्न
नि: + शास्त्र = नि: शास्त्र / निश्शास्त्र
नि: + संज्ञ = नि: संज्ञ / निस्संज्ञ
नि: + सरण = नि: सरण / निस्सरण
नि: + सृत = नि: सृत / निस्सृत
नि: + संकोच = नि: संकोच / निस्संकोच
नि: + शुल्क = नि: शुल्क / निश्शुल्क
यश: + शेष = यश: शेष / यशश्शेष
दु: + सह = दु: सह / दुस्सह
नि: + स्वार्थ = नि: स्वार्थ / निस्स्वार्थ
नि: + संग = नि: संग / निस्संग
मन: + संताप = मन: संताप / मनस्संताप
नि: + सहाय = नि: सहाय / निस्सहाय
पुन: + स्मरण = पुन: स्मरण / पुनस्स्मरण
दु: + शासन = दु: शासन / दुश्शासन
नि: + सार = नि: सार / निस्सार
अन्त: + शक्ति = अन्त: शक्ति / अन्तश्शक्ति
दु: + शील = दु: शील / दुश्शील
दु: + साध्य = दु: साध्य / दुस्साध्य
नि: + शांत = नि: शांत / निश्शांत
नि: + संतान = नि: संतान / निस्संतान
नि: + शत्रु = नि: शत्रु / निश्शत्रु
नि: + सर्ग = नि: सर्ग / निस्सर्ग
नि: + शब्द = नि: शब्द / निश्शब्द
चतु: + श्लोकी = चतु: श्लोकी / चतुश्श्लोकी
नि: + श्वास = नि: श्वास / निश्श्वास
यश: + शरीर = यश: शरीर / यशश्शरीर
दु: + संधि = दु: संधि / दुस्संधि
पुर: + सर = पुर: सर / पुरस्सर
चतु: + सीमा = चतु: सीमा / चतुस्सीमा
(9)विसर्ग संधि का नियम - 9 विसर्ग का लोप हो जाना :-
यदि विसर्ग (:) से पहले 'अ' हो तथा विसर्ग के बाद 'अ' के अलावा कोई अन्य स्वर आये तो विसर्ग का लोप हो जाता है |
अ: + अ के अलावा अन्य स्वर = विसर्ग का लोप
उदाहरण - अत: + एव = अतएव
तप: + उत्तम = तपउत्तम
मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
यश: + इच्छा = यशइच्छा
सघ: + आलस्य = सघआलस्य
पय: + आदि = पयआदि
विसर्ग संधि के अपवाद उदाहरण सहित :-
(a) कुछ शब्दों में विसर्ग (:) से पहले 'अ' आने के बाद भी विसर्ग का 'र्' बनता है | ( नियम - 2 का अपवाद )
उदाहरण - अन्त: + आत्मा = अन्तरात्मा
पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
पुन: + चिकित्सा = पुनर्चिकित्सा
अन्त: + गत = अन्तर्गत
अन्त: + ज्ञान = अन्तर्ज्ञान
अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
पुन: + वास = पुनर्वास
अन्त: + मन = अन्तर्मन
अन्त: + राष्ट्रीय = अंतर्राष्ट्रीय
पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
पुन: + आकलन = पुनराकलन
पुन: + अपि = पुनरपि
स्व: + ग = स्वर्ग
पुन: + जन्म = पुनर्जन्म
अन्त: + द्वंद्व = अन्तर्द्वन्द्व
पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
अन्त: + निहित = अंतर्निहित
अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
(b) हृस्व स्वर (:) + र = विसर्ग का लोप तथा विसर्ग से पूर्व हृस्व स्वर का दीर्घ स्वर में परिवर्तन
इ: + र् = ईर्
उदाहरण - नि: + रोग = नीरोग
नि: + रव = नीरव
नि: + रद = नीरद
दु: + राज = दूराज
नि: + रज = नीरज
नि: + रोध = नीरोध
नि: + रस = नीरस
धि: + रज = धीरज
नि: + रन्ध्र = नीरन्ध्र
दु: + रम्य = दूरम्य
चक्षु: + रोग = चक्षूरोग
संस्कृत में विसर्ग संधि के प्रकार : -
संस्कृत में विसर्ग संधि के 4 प्रकार निम्न है -
(1) सत्व विसर्ग संधि
(2) उत्व विसर्ग संधि
(3) रुत्व विसर्ग संधि
(4) विसर्ग लोप संधि
✻ विसर्ग (:) संधि की परिभाषा , नियम , सूत्र , प्रकार / भेद, अपवाद तथा 350+ उदाहरण PDF Download
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